चंद्रवंश की अठाइसवी पीढ़ी में महाराजा अजमीढ़जी का जन्म हुआ था। महाराजा अजमीढ़जी विकुंठनजी के जेष्ठ पुत्र और हस्ती के जेष्ठ पोत्र थे। जिनोने हस्तिनापुर बसाया था। द्विमीढ़ एव पुरुमीढ़ दोनों अजमीढ़जी के छोटे भाई थे।अजमीढ़जी जेष्ठ होने के कारण हस्तिनापुरराजगद्दी के उतराधिकारी हुए।अजमीढ़जी की जन्म तिथि के बारेमे किसी भी पुराण में उलेख नहीं मिलाता है तथा उनके राज्यकाल के विषय में इतिहासकारों का अनुमान है की ई.पू. 2200 से ई.पू. 2000 वर्ष में इनका राज्यकाल रहा है। महाराजा विकुंठनजी के बाद अजमीढ़जी प्रतिष्टानपुर (प्रयाग) एव हस्तिनापुर दोनों राज्यों के सम्राट हुए।
प्रारभ में चन्द्रवंशीयों की राजधानी प्रयाग प्रतिष्टानपुर में ही थी। हस्तिनापुर बसाये जाने के बाद प्रमुख राज्यगद्दी हस्तिनापुर हो गई।सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती हुए जिनके नाम पर पूरे प्रदेश का नाम हस्तिनापुर पड़ा। हस्ती के यशोधरा से विकुंठन हुए और विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़ हुए। इन तथ्यों से इस बात की जानकारी मिलाती है की अजमीढ़जी की राज्य सीमा विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इनके छोटे भाई द्विमीढ़ से बरेली के आस पास द्विमीढ़ नमक वंश चला। पुरुमीढ़ निसंतान ही रहे।ब्रम्हांड पुराण के अनुसार अजमीढ़जी मूलतः क्षत्रिय थे। पुरानो के अनुसार अजमीढ़जी की तीन रानिया थी जिनका नाम नलिनी,केशनी एव धुमिनी था। इन तीनो रानियों से अजमीढ़जी के कई वंशोपादक पुत्र हुये। इन्होने गंगा के ऊत्तरीऔर एव दक्षिणी दिशा में अपने राज्य का विस्तार किया। अजमीढ़जी का नील नामक पुत्र ऊतर पाझाल शाखा राज्य का शासक हुआ,जिसकी राजधानी अहिज्छत्रपुर थी। महाभारत के एक अध्याय में अजमीढ़जी की चार रानियों का ऊलेख मिलता है। ये कैकयी,गान्धारी,विशाला तथा रुता थी। अजमीढ़जी की चोथी पीढ़ी पीढ़ी राजस्व नाम का राजा हुआ। इसने सिंधु नदी के भू भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। इसके पांच पुत्र हुये। ये पाचों पञ्च पाञ्चलिक नाम से प्रसिद्ध हुए।
अजमीढ़जी एक महा प्रतापी वंशकर राजा थे। इनके वंश में होने वाले अजमीढ़जी वंशी कहलाये। महाभारत में वन पर्व में विदुर को अजमीढ़ वंशी कहा गया है। इसी पुराण में जहनु के वंश को भी अजमीढ़ वंशी कहा गया है। ब्रम्हपुराण के अनुसार अजमीढ़जी की तीनों पत्नियों से अजमीढ़जी वंश की तीन शाखाये बनी। केशिनी के पुत्र जहु से अजमीध वंश चला।
अन्य दो रानियों नीली व धुमिनी से भी दो पृथक वंश चले जो अजमीढ़ वंशु नाम से ही प्रख्यात हुये।
अजमीढ़ को धुमिनी नाम की पत्नी से ऋत नामक पुत्र हुआ। ऋत के पुत्र संवरण और संवरण के पुत्र कुरू से कोरव वंश प्रतिष्टापित हुआ।
वर्तमान मेरठ जिल्हे की मवाना तहसील के पश्चिम में गंगा और और यमुना के मध्य प्रदेश को हस्तिनापुर कहा गया है। महाराजा हस्ती के जीवन काल की प्रमुख घटना यही मानी जाती है की उनोने हस्तिनापुर का निर्माण करवाया। प्राचीन समय में हस्तिनापुर न केवल तीर्थ स्थल ही रहा है परन्तु देश का प्रमुख राजनैतिक एव सामाजिक केंद्र रहा है। कालांतर में हस्तिनापुर कौरवों की राजधानी रहा जिसके लिए प्रसिध्य कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ। अजमीढ़ नि:संदेह पौरववंश के महान सार्व भौम सम्राट थे। यद्यपि सही प्रमाणों के आभाव पूर्ण दावा तो नहीं किया जा सकता है किन्तु कई एक साहितिक एव एतिहासिक प्रमाणों के आधार पर इस बात के संकेत मिलते है की वर्तमान अजमेर जिसका प्राचीन नाम अज्मेरू था उसके संस्थापक अजमीढ़ ही थे। अजयराज चौहान द्वारा १२वी शताब्दी में अजमेर की स्थापना किये जाने की मान्यता निरस्त करने के कई प्रमाण उपलब्ध है।
अजयराज चौहान के अतिरिक्त कोई दूसरा दावेदार इतिहास में नहीं है। अंत: बहुत संभव है की अजमीढ़ द्वारा ही ही अजमेर की स्थापना की गई थी। मैढ़ जाती को गौरवन्वित करने में अहम् भूमिका निभा सकते है।
शरद पूर्णिमा (आश्विन शुक्ला १५) के दिन अजमीढ़जी जयंती मनाने की परम्परा मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज में वर्षो से चली आ रही है। मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार जाति की गरिमा को आगे बनाये रखने के लिए प्रत्येक मैढ़ क्षत्रिय का कर्त्तव्य है की उनके आदर्श का अनुसरण करे तभी हम अपने आदि पुरुष के प्रति कर्तव्य निष्ठ बने रह सकेंगे।