Friday 14 October 2016

सभी स्वर्णकार बंधूओ और परिवार को महाराजा अजमीढ़जी जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाये ....!!



मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष (प्रथम पूर्वज) "महाराजा अजमीढ़जी जयंती" के पावन अवसर पर सभी स्वर्णकार बंधूओ और परिवार को "स्वर्णकार रिश्ते" ग्रुप के तरफ से हार्दिक बधाई और शुभकामनाये।
श्री अजमीढ़जी महाराजा का मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज हमेशा ऋणी रहेगा। 
हमारे आदिपुरुष श्री महाराजा अजमीढ़जी को श्रध्दासुमन अर्पित कर साथ-साथ मिलकर आगे बढ़ने का संकल्प करे।

हाथ बढाओ-साथ बढाओ-जय स्वर्णकार समाज

जोर से बोलो-प्रेम से बोलो- सारे बोलो
"जय अजमीढ़जी"

---> मुझे गर्व है कि मैं "स्वर्णकार" हुँ।



शुभेछु:
स्वर्णकार रिश्ते
एडमिन टीम
www.swarnkarrishtey.in                                                                                                                                                                   




   

                                          




बांध कर पगड़ी जब.…अजमीढजी तैयार होते।
उठाकर तलवार जब.....घोड़े पर सवार होते।
देखते सब लोग और कहते कि
काश ! हम भी "स्वर्णकार" होते।

॥ जय अजमीढ़जी ॥


---> मुझे गर्व है कि मैं "स्वर्णकार" हुँ।



हमारे आदि पुरुष "श्री अजमीढ़जी महाराज" का इतिहास


चंद्रवंश की अठाइसवी पीढ़ी में महाराजा अजमीढ़जी का जन्म हुआ था। महाराजा अजमीढ़जी विकुंठनजी के जेष्ठ पुत्र और हस्ती के जेष्ठ पोत्र थे। जिनोने हस्तिनापुर बसाया था। द्विमीढ़ एव पुरुमीढ़ दोनों अजमीढ़जी के छोटे भाई थे।अजमीढ़जी जेष्ठ होने के कारण हस्तिनापुरराजगद्दी के उतराधिकारी हुए।अजमीढ़जी की जन्म तिथि के बारेमे किसी भी पुराण में उलेख नहीं मिलाता है तथा उनके राज्यकाल के विषय में इतिहासकारों का अनुमान है की ई.पू. 2200 से ई.पू. 2000 वर्ष में इनका राज्यकाल रहा है। महाराजा विकुंठनजी के बाद अजमीढ़जी प्रतिष्टानपुर (प्रयाग) एव हस्तिनापुर दोनों राज्यों के सम्राट हुए।
प्रारभ में चन्द्रवंशीयों की राजधानी प्रयाग प्रतिष्टानपुर में ही थी। हस्तिनापुर बसाये जाने के बाद प्रमुख राज्यगद्दी हस्तिनापुर हो गई।सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती हुए जिनके नाम पर पूरे प्रदेश का नाम हस्तिनापुर पड़ा। हस्ती के यशोधरा से विकुंठन हुए और विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़ हुए। इन तथ्यों से इस बात की जानकारी मिलाती है की अजमीढ़जी की राज्य सीमा विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इनके छोटे भाई द्विमीढ़ से बरेली के आस पास द्विमीढ़ नमक वंश चला। पुरुमीढ़ निसंतान ही रहे।ब्रम्हांड पुराण के अनुसार अजमीढ़जी मूलतः क्षत्रिय थे। पुरानो के अनुसार अजमीढ़जी की तीन रानिया थी जिनका नाम नलिनी,केशनी एव धुमिनी था। इन तीनो रानियों से अजमीढ़जी के कई वंशोपादक पुत्र हुये। इन्होने गंगा के ऊत्तरीऔर एव दक्षिणी दिशा में अपने राज्य का विस्तार किया। अजमीढ़जी का नील नामक पुत्र ऊतर पाझाल शाखा राज्य का शासक हुआ,जिसकी राजधानी अहिज्छत्रपुर थी। महाभारत के एक अध्याय में अजमीढ़जी की चार रानियों का ऊलेख मिलता है। ये कैकयी,गान्धारी,विशाला तथा रुता थी। अजमीढ़जी की चोथी पीढ़ी पीढ़ी राजस्व नाम का राजा हुआ। इसने सिंधु नदी के भू भाग पर अपना आधिपत्य जमाया। इसके पांच पुत्र हुये। ये पाचों पञ्च पाञ्चलिक नाम से प्रसिद्ध हुए।
अजमीढ़जी एक महा प्रतापी वंशकर राजा थे। इनके वंश में होने वाले अजमीढ़जी वंशी कहलाये। महाभारत में वन पर्व में विदुर को अजमीढ़ वंशी कहा गया है। इसी पुराण में जहनु के वंश को भी अजमीढ़ वंशी कहा गया है। ब्रम्हपुराण के अनुसार अजमीढ़जी की तीनों पत्नियों से अजमीढ़जी वंश की तीन शाखाये बनी। केशिनी के पुत्र जहु से अजमीध वंश चला।
अन्य दो रानियों नीली व धुमिनी से भी दो पृथक वंश चले जो अजमीढ़ वंशु नाम से ही प्रख्यात हुये।
अजमीढ़ को धुमिनी नाम की पत्नी से ऋत नामक पुत्र हुआ। ऋत के पुत्र संवरण और संवरण के पुत्र कुरू से कोरव वंश प्रतिष्टापित हुआ।
वर्तमान मेरठ जिल्हे की मवाना तहसील के पश्चिम में गंगा और और यमुना के मध्य प्रदेश को हस्तिनापुर कहा गया है। महाराजा हस्ती के जीवन काल की प्रमुख घटना यही मानी जाती है की उनोने हस्तिनापुर का निर्माण करवाया। प्राचीन समय में हस्तिनापुर न केवल तीर्थ स्थल ही रहा है परन्तु देश का प्रमुख राजनैतिक एव सामाजिक केंद्र रहा है। कालांतर में हस्तिनापुर कौरवों की राजधानी रहा जिसके लिए प्रसिध्य कुरुक्षेत्र युद्ध हुआ। अजमीढ़ नि:संदेह पौरववंश के महान सार्व भौम सम्राट थे। यद्यपि सही प्रमाणों के आभाव पूर्ण दावा तो नहीं किया जा सकता है किन्तु कई एक साहितिक एव एतिहासिक प्रमाणों के आधार पर इस बात के संकेत मिलते है की वर्तमान अजमेर जिसका प्राचीन नाम अज्मेरू था उसके संस्थापक अजमीढ़ ही थे। अजयराज चौहान द्वारा १२वी शताब्दी में अजमेर की स्थापना किये जाने की मान्यता निरस्त करने के कई प्रमाण उपलब्ध है।
अजयराज चौहान के अतिरिक्त कोई दूसरा दावेदार इतिहास में नहीं है। अंत: बहुत संभव है की अजमीढ़ द्वारा ही ही अजमेर की स्थापना की गई थी। मैढ़ जाती को गौरवन्वित करने में अहम् भूमिका निभा सकते है।
शरद पूर्णिमा (आश्विन शुक्ला १५) के दिन अजमीढ़जी जयंती मनाने की परम्परा मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज में वर्षो से चली आ रही है। मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार जाति की गरिमा को आगे बनाये रखने के लिए प्रत्येक मैढ़ क्षत्रिय का कर्त्तव्य है की उनके आदर्श का अनुसरण करे तभी हम अपने आदि पुरुष के प्रति कर्तव्य निष्ठ बने रह सकेंगे।















कौन है अजमीढ़ महाराजा और हम सिर्फ अजमीढ़जी की ही जयंती क्यों मनाते है ??


मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष महाराज अजमीढ़ देव ने ब्रह्मा की 28 वीं पीढ़ी में जन्म लिया था। वे चन्द्रवंशीय थे। 
भगवत पुराण के अनुसार दुष्यंत से भरत, भरत से भूमन्यू, भूमन्यू से सुहौत्र, सुहोत्र से हस्ती,हस्ती से विकुंठन और विकुंठन से अजमीढ़ हुए। 
उन्होंने सर्वप्रथम स्वर्ण समाज को अपनाया था। कालान्तर में क्षत्रिय स्वर्णकार समाज उनके वंशज हैं।
स्वर्णकार जाति का प्रादुर्भाव महाराजा अजमीढ़ से हुआ था।
महान क्षत्रिय राजा होने के कारण अजमीढ़ धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है। वे सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप अपनी प्रजा को भेंट किया करते थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाने की शिक्षा देने के लिए उन्होंने देश भर से लोगो की पहचान की और उन्हें स्वर्ण-आभूषण बनाने की शिक्षा-दीक्षा दी उनमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र शामिल थे।
महाराजा अजमीढ़ एक राजा थे और उन्होंने अपनी प्रजा के बीच ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र का भेद नहीं किया। सभी को सामान अवसर देकर स्वर्ण-शिल्पी बनाया है। अतः हम सभी स्वर्णकार एक हैं।
महाराजा अजमीढ़ केवल मैढ़ क्षत्रिय राजपूत सुनारों के ही आदि-पुरुष नहीं बल्कि समस्त सुनार समाज के आदि पुरुष हैं (ठीक भगवान गौतम बुद्ध की तरह, जो एक प्रतापी राज थे और उनके अनुयायी बौद्ध कहलाये) । भारतीय समाज के सभी स्वर्णकार इनको आदि पुरुष मानकर अश्विनी शुक्ल पूर्णिमा (18 अक्टूबर 2013) को जयंती मनाते हैं।

|| जय अजमीढ़जी ||




काउंट डाउन स्टार्ट फॉर "अजमीढ़जी जयंती"


आदरणीय समाजबंधु,
कुछ ही दिनों बाद याने 15 अक्टूबर 2016 (शरद पूर्णिमा) को हमारे आदिपुरुष श्री महाराजा अजमीढ़जी की जयंती का उत्सव आने वाला है।
भारतभर में बसे सभी मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाजबंधु,संगठन और पदाधिकारिओ,युवाओ से एक अनुरोध है की आप अपने राज्य/शहर/गाव जहा भी आप रहते हो वहा इस साल हमारे आदिपुरुष श्री महाराजा अजमीढ़जी की जयंती बड़ी धूमधाम से मनाने का संकल्प करे।
समाज में युवा अभी से श्री अजमीढ़जी जयंती की तैयारी में जुट जाये।
शहर हो या गाव सभी तरफ इस बार श्री अजमीढ़जी जयंती की गूँज/आवाज़ सुनने को मिलनी चाहिए।
फेसबुक/व्हाट्सअप/समाज पत्रिका पर आपके शहर/गाव में धूमधाम से मनाई गई श्री अजमीढ़जी जयंती की फोटो और न्यूज़ मिलनी ही चाहिये।
श्री अजमीढ़जी जयंती को अपने परिवार और समाज का त्यौहार की तरह मनाकर हमारे आदिपुरुष श्री महाराजा अजमीढ़जी के प्रति आदरभाव व्यक्त करे। 

साथ ही सभी समाज बंधू से विन्रम अनुरोध है की अजमीढ़जी जयंती पर कुछ अच्छे सामाजिक कार्य कर आदिपुरुष को सच्ची निष्ठा और प्रेम अर्पित करे। 

• अन्नदान करे।
• रक्तदान करे।
• समाज के होनहार बच्चो का सत्कार करे। 
• समाज के जरूरतमंद होनहार बच्चो की पढाई में सहयोग प्रदान करे। 
• अपने दुकान/प्रतिष्ठान को एक दिन का अवकाश देकर आदिपुरुष अजमीढ़जी का गौरव बढ़ाये। 
• समाजबंधु/महिलाओ/बच्चो के लिए विभिन्न स्पर्धाओं का आयोजन करे। 
• अजमीढ़जी महाराज की फोटो/मूर्ति के साथ घोड़े-हाथी, बैंडबाजे के साथ जुलुश निकाले। 
• अपने घर मे अजमीढजी की प्रतिमा को माला लगाए।
• हर शहर/गाव में संगठन के माध्यम से अजमीढ़जी जयंती सभी मिलकर साथ मनाये।
• भोजन का भोग लगाए एव सामूहिक भोजन या नास्ते का दूध के प्रसाद के साथ आनंद उठाये। 

अपने दुकानदारी और रोजके कामो का खयाल रखनेमे महाराजा अजमीढजी को भुल नही जाना।
धन्यवाद।
जय अजमीढ़जी।



अग्रिम शुभकामनाओं के साथ 
स्वर्णकार रिश्ते 
मोबाइल- 9029731422
www.swarnkarrishtey.in








अजमीढ़जी जयंती पर अपना प्रोफाइल पिक्चर में अजमीढ़जी का फोटो जरूर लगाये।



आने वाले 15 अक्टूबर 2016 को मैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदिपुरुष अजमीढ़जी महाराजा की जयंती आनेवाली है। 
इसलिए सभी समाजबंधुओं को विनती है की अपने फेसबुक प्रोफाइल और व्हाट्सप्प प्रोफाइल पिक्चर में अजमीढ़जी का फोटो लगाकर उनको आदर सन्मान देकर उनका नाम बढ़ाये।
धन्यवाद।

|| जय अजमीढ़जी ||